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छत्तीसगढ़ राज गीत के रचयिता :डॉ. नरेन्द्र देव वर्मा

डॉ. नरेन्द्र देव वर्मा, छत्तीसगढ़ के राज्य गीत के रचयिता एक ऐसे व्यक्ति जिन्होंने छत्तीसगढ़ का नाम कला और साहित्य के क्षेत्र में ऊँचा करने में अपना कीमती योगदान दिए है, इसी के बदौलत उनके द्वारा लिखित गीत जो की छत्तीसगढ़ महतारी के महिमा को अच्छे ढंग से प्रस्तुत करता है को छत्तीसगढ़ के राजकीय गीत के रूप में निरूपित किया गया है।
नाम: डॉ. नरेंद्र देव वर्मा (Dr. Narendra Dev Verma)
स्थान: सेवाग्राम वर्धा
दिनांक: 4 नवम्बर 1939
पिता: धनीराम वर्मा
भाई: तुलेन्द्र(स्वामी आत्मानंद), देवेंद्र, राजेंद्र, ओमप्रकाश
निधन: 8 सितम्बर 1979 (रायपुर)
परिचय:
हिंदी साहित्य और छत्तीसगढ़ी भाषा को देश में पहचान दिलाने वाले अतुल्य साहित्यिक सम्पदा से परिपूर्ण डॉ. नरेन्द्र देव वर्मा का जन्म सेवाग्राम वर्धा नामक स्थान में 4 नवम्बर सन 1939 को हुआ था। उनके पिता स्व.श्री धनीराम जी वर्मा एक शिक्षक थे, डॉ. नरेन्द्र देव वर्मा अपने कुल 5 भाइयों क्रमशः तुलेन्द्र, देवेंद्र, नरेंद्र, राजेंद्र और ओमप्रकाश में से अकेले विवाहित और गृहस्थ थे। डॉ. वर्मा हिंदी के साथ-साथ छत्तीसगढ़ी में भी अनेक रचनाएँ कर छातीसगढ़ का मान पुरे देश में बढ़ाया। वे चाहते तो सिर्फ हिंदी में रचनाएँ कर प्रशिद्धि के शिखर तक पहुँच सकते थे परन्तु उन्होंने छत्तीसगढ़ी को पुरे देश में एक अलग पहचान दिलाने हेतु अथक प्रयास किया। एक छोटी सी उम्र में साहित्य के लिए इतना कुछ करना अपने आप में एक उदाहरण हैं।
शिक्षा:
मैट्रिक तक सामान्य सा लगने वाला बालक स्नातक में पहुँचने से उनके अंदर छुपी प्रतिभा बाहर आने लगी थी, यह कहना गलत नहीं होगा की उनका बी. ए. में दाखिला लेना उनके लिए अपने अंदर छुपे साहित्य की रूचि को पहचानना था। बी.ए. को पढ़ाई पूरी करने के पश्चात नरेन्द्र देव जी एम. ए, की पढ़ाई के लिए सागर यूनिवर्सिटी में दाखिला लिया यहाँ उनकी पहचान एक वक्ता के रूप में तब सामने आई जब अखिल भारतीय स्तर पर आयोजित होने वाले वाद-विवाद प्रतियोगिता के लिए उन्हें सागर यूनिवर्सिटी का प्रतिनिधित्व करने का मौका मिला और उन्हें इस प्रतियोगिता में सर्वश्रेष्ठ वक्ता के रूप में चुना गया। एम.ए. के बाद उन्हें प्रयोगवादी काव्य और साहित्य चिंतन शोध प्रबंध विषय पर सन 1966 में पी.एच. डी. की उपाधि प्राप्त हुई। अब नरेन्द्र देव, डॉ. नरेन्द्र देव बन चुके थे परन्तु वे यहीं तक रुकने वालों में से नहीं थे। उन्होंने रविशंकर शुक्ल विश्वविद्यालय से भाषा विज्ञान में एम. ए. किया और सन 1973 में विषय छत्तीसगढ़ भाषा का उद्भव विकास शोध प्रबंध के आधार पर भाषा विज्ञान में पी. एच. डी. की उपाधि प्रदान की गयी।
विवाह:
डॉ. नरेन्द्र देव वर्मा का विवाह किसी फिल्मी कहानी से काम नहीं था, इनका विवाह सिर्फ 18 वर्ष की आयु में पिता जी द्वारा करा दी गयी थी। नरेंद्र देव जी के ज्येष्ठ भाई तुलेन्द्र (विवेकानंद स्वामी आत्मानंद ) बचपन से ही स्वामी विवेकानंद जी के दिखाए पथ का अनुसरण कर एक सिद्ध पुरुष के रूप में अपना पहचान बना चुके थे, परन्तु विवेकानंद के आदर्शों की उनकी इस आस्था का प्रभाव उनके भाइयों के में पड़ना स्वाभाविक था। उनके पिता धनीराम जी द्वारा इसको भांप कर उनके दूसरे क्रम के भाई देवेंद्र और मात्र 18 साल के नरेंद्र की विवाह तय कर दी गयी। शादी वाले दिन देवेंद्र शादी स्थल से ही भाग गए और नरेंद्र वर्मा वहां फंस गए। इसी कारण उनके परिवार में सिर्फ नरेन्द्र वर्मा ही इकलौते गृहस्थ जीवन यापन करने वाले सदस्य थे। उनके अन्य भाइयों ने भी अपने बड़े भाई के रास्तों में चलकर शादी नहीं की।
रचनाएँ:
डॉ. नरेन्द्र देव वर्मा साहित्य के क्षेत्र में इतने अधिक प्रतिभावान थे की उनसे साहित्य का कोई भी क्षेत्र अछूता नहीं था वे एक कवि, उपन्यासकार,चिंतक,नाटककार, संपादक और श्रेष्ठ मंच संचालक थे।
छत्तीसगढ़ी गीत संग्रह: अपूर्वा (सुप्रसिद्ध संग्रह)
हिंदी उपन्यास: सुबह की तलाश (सोनहा बिहान छत्तीसगढ़ी रूपांतरित नाटक जो छत्तीसगढ़ में सुप्रसिद्ध नाटक है)
हिंदी ग्रन्थ: छत्तीसगढ़ भाषा का उद्विकास, नयी कविता सिद्धांत एवं सृजन, हिंदी नव स्वच्छन्दवाद, हिंदी स्वच्छंदवाद प्रयोगवादी।
छत्तीसगढ़ प्रहसन: मोला गुरु बनाई लेते।
हिंदी अनुवाद: श्री मां की वाणी, श्री कृष्ण की वाणी, मोंगरा, श्री राम की वाणी, पैगम्बर मोहम्मद की वाणी, ईसा मसीह की वाणी, बुद्ध की वाणी।
निधन:
एक प्रसिद्द कवि, मंच संचालक और नाटककार जिन्होंने छत्तीसगढ़ी को एक अलग पहचान दिलाने के लिए अथक प्रयास किये जिसके बदौलत ही सोनहा बिहान जैसे छत्तीसगढ़ी को प्रेरणा मानकर अनेक नाटककारों ने नए नए छत्तीसगढ़ी नाटक लिखे और उनका संचालन किया। डॉ. नरेन्द्र वर्मा जी को अपने आखिरी समय का ज्ञान था क्योंकि अंतिम समय में उन्होंने अपने अनेक लेखन कार्य रात-दिन जागकर पूर्ण किया। वे अंत समय से कुछ महीने पहले अपने दोस्त को अपने परिवार की देख रेख करने को कहते थे और पूछने पर बोलते थे की मुझे एक लम्बी यात्रा पर जाना है। डॉ. नरेन्द्र देव सिर्फ 40 वर्ष की उम्र में ही 8 सितम्बर 1979 को रायपुर में ब्रम्हलीन हो गए। यह छत्तीसगढ़ के लिए किसी बड़े छति से काम नहीं था परन्तु उन्होंने इन 40 वर्षों में जितना काम छत्तीसगढ़ को पहचान दिलाने के लिए किया यह काम करने के लिए एक साधारण मनुष्य को 2 बार जन्म लेने की आवश्यकता पड़ेगी।
भूपेश बघेल जी का सम्बन्ध: छत्तीसगढ़ के तीसरे मुख्यमंत्री श्री भूपेश बघेल जी का विवाह डॉ. नरेन्द्र देव वर्मा जी की ज्येष्ठ पुत्री मुक्तेश्वरी वर्मा के साथ हुआ है।
डॉ. नरेद्र देव वर्मा द्वारा लिखित कविता को “अरपा पैरी के धार……. ” को 3 नवम्बर 2019 को छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल द्वारा राजगीत घोषित किया गया। जिसका प्रकाशन राजपत्र में 18 नवम्बर 2019 को किया गया है।
इस गीत को निम्न लिंक को क्लिक कर अपने मोबाइल में डाउनलोड कर सकतें हैं।